ज्याना साडेसाती आहे, शनी महादशा आहे त्यांनी दररोज आणि इतरांनी दर शनिवारी आवर्जून वाचावे
श्री गणेशाय नमः
| उज्जयनी या नगरमध्ये जो विक्रम राजा |
न्याय नीतीने राज्य करी तो आनंदी हि प्रजा
| अशाच एके समयी त्याने पंडित पाचारुनी |
ग्रहश्रेष्ठ तो कोण असे? मज सांगावे ज्ञानी
| रवि ग्रहाची पूजा करिता विघ्ने ती पळती |
| आधिव्याधि नि दरिद्र दु:खे त्या स्मरता शमती |
| सोमाची ती ताकद भारी पोषी वनराजी |
शंभूच्या तो भाळी विलसे नच कोणा गांजी II
| मंगळ ग्रह तो क्रूर परंतु पुजकास मानी |
दु :खे निरसुनि वाचवी दीना द्रव्या देउनी II
| बुध ग्रहाचा प्रताप मोठा सर्व ग्रह माजी |
विघ्ने पळती मुळापासुनी जो मोदे पूजी I
| गुरु ग्रहाची फार थोरवी प्रिय पूजकासी |
शुक्राचे ते पूजन करिता भाव दु:खे नाशी II
| पंडितांनी सर्व ग्रहांची तारीफ ती कथुनी |
शनिदेवाचे वर्णन करता रायाचे कानी II
| शब्दची पडले शनि देवाची दृष्टी पितयावर |
पडता भरले क्षणात त्याच्या कुष्ठची अंगावर II
| सारथी होता तोही झाला क्षणात पांगुळा |
अश्वाचे ते डोळे जाऊन झाला घोटाळा II
| वाक्य ऐकुनी नृपतीने त्या टाळी वाजवली |
शनि देवाची हसून त्याने टवाळीच केली II
| त्याच वेळी विमानातुनी जाता शनिराजा |
खाली उतरले पाहता विनये कर जोडी राजा II
| हात जोडूनी शनिदेवाला वदला तो नृपती |
| तुम्हा निंदिले क्षमस्व न धरा राग मजवरती II |
| बोल ऐकुनी शानिश्वराना राग बहु आला |
बारावा मी आलो आता कन्या राशीला II
| चमत्कार हा तुला दाखवीन क्षणात एका मी |
रूप पालटूनी शनिदेव आले कथा असे नामी II
| वारू विकाया आणले त्यांनी उज्जयनी नगरा |
अबलख वारुवरी बैसला विक्रम राव खरा II
| टाच मारीता वारू गेला जैसा कि वारा |
दाट वनी त्या नृपतीने धरला कि आसरा II
| वारू गुप्त तो होता नृपती निद्रिस्तचि झाला |
प्रभात होता तामालीन्द्पूर या नगरा गेला II
| तामालीन्द्पूर नगरामध्ये वैश्याची तनया |
मोहित झाली विवाह करण्या पाहुनी तो राया II
| हेतू आपुला कथुनी मुलीने बाबांच्या कानी |
| द्यावे धाडुनी अतिथीला त्या इच्छा-वर म्हणुनी II |
| आज्ञे परी तो अतिथी गेला पुत्रीच्या महाली |
| मध्यरात्रीला आरती घेउनि आली ती बाळी II |
| शनिदेवाच्या मायेने तो निद्रीस्ताची झाला |
| मान वळवूनी पाहीना तो वैश्य कन्यकेला II |
| भिंतीवरच्या चित्रामधल्या निर्जीव हंसाने |
| खुंटीवरचा मौक्तिक हारची गिळला प्रेमाने II |
| राती सौख्य ते नसे लाभले वैश्य कन्यकेला |
चोरी करुनी अतिथिने त्या हर पहा नेला II
| वैश्याने मग अतिथीला त्या नेले बांधुनिया |
| राया करवी हात पाय ते दिधले तोडूनिया II |
| कर-चरणाविन दीन कष्टला राया तो भारी |
| उज्जायनीची तेलीण चाले तमालिंद नगरी II |
| तिने पहिले नीजनृपतीला दया बहु आली |
| तेल-घाणीवर नेते यांना विनंती हळू केली II |
| सदय होऊनी दिली मान्यता चंद्रसेनानी |
| तेलीणिची विनयशील ती विनंती ऐकुनी II |
| घाण्यावरती नृपतीने तो दीप राग म्हणता |
| दीप उजळले नगरामध्ये ते हा हा म्हणता II |
| राग ऐकुनी पद्मावती ती प्रसन्न मनी झाली |
| विवाह करण्या विक्रमासवे ती उत्सुक झाली II |
| इतुक्या अवसरी शनिदेव ते आले त्या स्थानी |
| पाद- हस्त अन दिव्य तेज ते दिधले तोषोनी II |
| शनिदेव ते प्रसन्न झाले राव विक्रमाला |
| इच्छावर तो मागून घेण्या सांगितले त्याला II |
| भूपति बोले गांजू नको तू मनुष्यप्राण्याला |
| हीच विनंती मनापासुनी केली देवाला II |
| वाक्य ऐकुनी राजाचे श्री शनिदेव वादती |
| परपीडेच्या कष्टाची तुज जाण असे पुरती II |
| विक्रमासी हास्यविनोदे शनिदेव वदले |
दानव देवा छळले भारी, तुज थोडे छळले II
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| देव दैत्य ते कसे गांजिले श्रवण करी राया |
| प्रातः काळी वाकून केले नमनचि गुरुराया II |
| हात जोडूनी विनंती केली श्रीगुरुनाथाला |
| साडेसात वर्षे येतो तुमच्या राशीला II |
| शानिदेवाचे बोल ऐकुनी गुरुदेव म्हणती |
| साडेसात वर्षे येत होईल दीन स्थिती II |
| सव्वा प्रहरचि यावे म्हणुनी सांगितले गुरुनी |
| बोल गुरुचे मान्यचि केले श्री शानिदेवानी II |
| वाक्य ऐकुनी गुरुदेवांनी विचार मनी केला |
स्नान संध्यादि कर्मामध्ये दवडीन हि वेळा !!
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| स्नान करुनी गंध लावूनी दिसता गुरुराजे |
| फकीर वेषे येउनि शनिने दिधली खरबुजे II |
| तीच खरबुजे पंचामध्ये बांधुनी श्रीगुरूनी |
| रस्ता धरला नगराचा झणी मोठ्या हर्षानी II |
| त्या नगरीचे राजपुत्र अन प्रधानपुत्र वनी |
| शिकारीस ते गेले होते दो घोडयावरुनी II |
| प्रहर झाला तरी नाच आले म्हणुनी रायानी |
धुंडायासी सैन्य धाडिले बघ रानोरानी II
| सैन्य निघाले तोच पहिला विप्र एक त्यांनी |
झोळी होती हाती त्याच्या घेतली काढोनी II
| झोळी बघता त्यात निघाले शिरकमळे दोन्ही |
| प्रधान राजपुत्राची ती घेतली काढोनी II |
| शिरकमळे ती विप्रासहितचि राजाच्या महाली |
| विप्र कृती ती यथासांग मग त्याला ऐकवली II |
| राजाने मग आज्ञा केली द्यावे सुळी याला |
| म्हणुनी सेवके लोखंडाचा सूळ उभा केला II 48 |
| विप्राला त्या घेउनि जाता नगराबाहेरी |
| विनंती केली देऊ नका सुळी सव्वा प्रहर तरी II |
| विप्राला त्या घेउनि जाता विप्र काय बोले |
| अपराधी मी नसे मुळी मज शनिने गांजीयले II |
| एक प्रहर मज वाट बघुनी द्यावे झणि फाशी |
| म्हणुनी लागला विप्र सविनये सेवक-चरणाशी II |
| विप्रवचन ते श्रवण करुनी राज्यासेवकांनी |
| मान्यची केले बोल तयाचे मोठ्या प्रेमानी II |
| हा हा म्हणता सव्वा प्रहरचि निघोनिया जाता |
| राजपुत्र अन प्रधानपुत्रही आले अवचीता II |
| त्यांना पाहुनी रायाने मग विप्र पाचारुनी |
| द्रव्य देऊनी सोडविले त्या वंदनही करुनी II |
| शनिदेवाच्या मायेने मी कष्ट दिले फार |
| म्हणुनि लोळला तोच नृपती गुरुचे पायावर II |
| झोळी काढुनी पाहता ती खर्बुजेच होती |
| शिरकमळांची लुप्त जाहली क्षणात आकृती II |
| शानिदेवानी नमन करुनी श्री गुरुदेवाना |
| प्रश्नचि केला कशा भोगिल्या दारूण त्या यातना II |
| गुरु बोलले शनिदेवा तू ग्रहात श्रेष्ठ खरा |
सव्वा प्रहारामध्ये माझा केला मातेरा II
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| सत्वर जाऊनी शनिदेव ते शंभू चरणासी |
जाऊन वदले येतो स्वामी तुमच्या मी राशि II
| बोल ऐकुनी शंभूराजा लपला कैलासी |
काय आपुले केले वदले श्रीशानिदेवासी II
| धाक त्रिभुवनी असता तुमचा कैलासी लपला |
| प्रताप माझा पाहुनी तुम्ही भयभितचि झाला II |
| आला जेव्हा शनिग्रह तो दशरथ-पुत्राला |
| चौदा वर्षे दारूण त्याने वनवास भोगियला II |
| तसाच येता श्रीशानिराजा सीतामाईला |
लंकेशाने कपात करुनी नेले लंकेला II
| बारावा तो आला जेव्हा लंकाधीशाला |
| सरळचि झाले नवग्रहचि तो मुकला प्राणाला II |
| बारावा तो आला जेव्हा हरिश्चंद्र राया |
| डोंबा घरी तो कुमार विकला तशीच ती जाया II |
| कपटाने ती पहा भोगिली गौतमाची जाया |
| पापाने इंद्राची झाली रूपहीन काया II |
| नळराजाची प्रिय पत्नी जी दमयंती मानी |
| विरह करविला प्रेमाचा त्या ताटातूट करुनी II |
| गुरुपत्नीसी कपटे धरता कलंक चंद्राला |
| वसिष्ठासी तो येता गेले सुत-शत स्वर्गाला II |
| पंडूसुतांना पीडा होता वनवासी झाले |
| श्रीकृष्णाला स्यमंतकाचे लांछनही लागले II |
| विक्रमाला पाहुनी वदला वैश्य दीन वाणी |
| अज्ञानाने केली तुमची छळणूक रायानी II |
| एक देश तो राये दिधला मोदे वैश्याला |
| वैश्याने हि कन्या अर्पुनी दुवाच जोडीयला II |
| चित्रीच्या त्या हंसाने जो हर पहा गिळला |
| तसाच त्याने पहा पुनरपि मोदे उगळीला II |
| हार उगळीता विस्मय वाटे साऱ्या जनतेला |
| हात जोडूनी वंदन करिती श्री शनि देवाला II |
| प्रेमाने त्या विक्रम न्रुपतिसि चंद्रसेन वदला |
| आपण कुठले ? वंश कोणता ? सांगा हो मजला II |
| प्रश्न ऐकता विक्रम बोले काय चंद्रसेना |
| विक्रम माझे नाव असे मी उज्जैनीचा राजा II |
| चंद्रासेनाने आपली कन्या मोदे देवोनी |
| त्या राजसी सख्य जोडले भाक्तीप्रेमानी II |
| राजाची त्या शनि-प्रसादे साडेसाती गेली |
| राव पाहुनी उज्जैनीची प्रजा सुखी झाली II |
| श्री शनि-प्रभूचे वर्णन केले शनिश्वरा नमुनी |
| शब्दही सोपे भाषा सुंदर मांडीयली कविनी II |
| नित्य प्रभाती व शनिवारी करी पठण त्याला |
| देव शनि तो देईल द्रव्या कीर्ती वैभवाला II |
| वर्षे साडेसात शनीची पीडा ज्या होते |
प्रसन्नचि मने वाचन करिता दैन्य लया जाते II
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| सप्रेमे हि काव्य मालिका पुष्पकांतांनी |
नम्रत्वाने अर्पण केली मातेच्या चरणी II -( संग्रहीत )
सदर शनी महात्म्य whatsapp पाहिजे असल्यास अवश्य संपर्क करा 9819830770
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