विश्वाचे आर्त माझे मनी प्रकाशले । अवघे चि जालें देह ब्रह्म ॥१॥ आवडीचें वालभ माझेनि कोंदाटलें । नवल देखिलें नभाकार गे माये ॥२॥ बाप रखुमादेवीवरू सहज नीटु जाला । हृदयीं नटावला ब्रह्माकारें ॥३॥
| रचना | - | संत ज्ञानेश्वर |
| संगीत | - | पं. हृदयनाथ मंगेशकर |
| स्वर | - | लता मंगेशकर |

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