वर्षे अमृताचा घनु ॥१॥ हरि पाहिला रे हरि पाहिला रे । सबाह्याभ्यंतरी अवघा व्यापक मुरारी ॥२॥ दृढ विटे मन मुळी । विराजित वनमाळी ॥३॥ बरवा संतसमागमु । प्रगटला आत्मारामु ॥४॥ कृपासिंधु करुणाकरू । बाप रखमादेविवरू ॥५॥
| रचना | - | संत ज्ञानेश्वर |
| संगीत | - | पं. हृदयनाथ मंगेशकर |
| स्वर | - | लता मंगेशकर |
| राग | - | भैरवी |

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